शुक्रवार, 3 अप्रैल 2009

प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा समय की मांग

प्राचीनकाल से महात्मा, योगि इत्यादि लोग इसी धरती पर शुध्द जीवन व्यतीत कर रहे थे। वे प्राकृति से लगाव और उनमें रुचि लिया करते थे। पुराणों और महाकाव्यों में गंगा, यमुना जैसी महानदियों का वर्णन बहुत सहजता से किया गया हैं। महाकवि कालिदास ने अपने कुमारसम्भवं महाकाव्य में गंगा का वर्णन इस प्रकार किया है-
प्रभामहत्या शिखयेव दीप-
स्त्रिमार्गयेव त्रिदिवस्य मार्ग:।
संस्कारवत्येव गिरा मनीषी
तया स पूतश्च विभूषितश्च॥
अर्थात अधिक प्रभा वाली ज्वाला से दीपक समान तीनों लोको में प्रवाहित होने वाली गंगा द्वारा स्वर्ग के मार्ग के समान, व्याकरणात्मक चक्षु से शुध्द वाणी से विव्दा के समान उस पार्वती द्वारा वह हिमालय पवित्र और शुशोभित हुआ।
परन्तु आज का मानव प्राकृति के सारे अवयवों को नष्ट करके स्वयं के स्वास्थय को भी नष्ट करने पर तुला हुआ है। प्राकृति ने हमें बनाया हमें एक अच्छी जिन्दगी दी है लेकिन मानव
वैज्ञानिकता के प्रति इस कदर फँस गया है कि अगर निकलना चाहे तो भी नही निकल सकता। हम प्राकृति के बारे में बातें तो बहुत बड़ी-बड़ी करते है लेकिन उस पर अमल करने मे सदैव असफल रहते हैं। अत: इससे स्पष्ट होता है कि हमें आधुनिकता पसंद है।
वैसे तो मानव का सम्बन्ध प्राकृतिक संसाधनों से बहुत पुराना है। आदिमानव से वर्तमान मानव तक का विकास प्राकृतिक संसाधनों से रहा है। भोजन, जल, वस्त्र इत्यादि भौतिक सुख हमें इन्हीं प्राकृतिक संसाधनों से किसी न किसी रूप में हमें सुलभ हो रहे हैं। जरा सोचिए यदि हम इन संसाधनों का गलत रूप से प्रयोग करते रहे तो निश्चित ही मानव सभ्यता खतरे पड़ सकती है।
दीपेश कुमार मौर्य (शकरमंडी, जौनपुर)

3 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

आपने बहुत सहीं बात बताया / पड़कर बहुत खुशी हुई / मे ये जानलेना चाहता हू कि, कौनसी टूल उसे करके आपने हिन्दी टाइप करते हे ? रीसेंट्ली मे यूज़र फ्रेंड्ली टाइपिंग टूल केलिए सर्च कर रहा ता, तो मूज़े मिला " क्विलपॅड ". ये तो 9 भाषा मे उपलाबद हे और इस मे तो रिच टेक्स्ट एडिटर भी हे / आप इसिक इस्तीमाल करते हे क्या...?

सुना हे की " क्विलपॅड " गूगले से भी अच्छी टूल हे..? गूगल इंडिक मे तो 5 भाषा उपलब्ड़ा हे और उसमे तो रिच टेक्स्ट एडिटर भी नही / ये दोनो मे कौंसिवाली यूज़र फ्रेंड्ली

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत बढिया आलेख लिखा है आपने ... अभी सबसे अधिक महत्‍व इसे ही मिलना चाहिए।

समयचक्र ने कहा…

बहुत सहीं बात .बढिया आलेख..