जीवन जीने और उसका उपभोग करना सभी प्राणियों का हक है और इस हक को हमसे कोई नही छीन सकता। मानव अपने स्वार्थ में जीता है और दूसरों पर ध्यान नही देता अपनी इस अछोर इच्छा के कारण प्रक्रिति सहित उसके द्वारा निर्मित जीवों को भी नष्ट करने को तुला हुआ है।
अब तो कई ऐसे जीव हैं जिनको केवल पुस्त्कों में देखा जाता है अथवा किसी द्वारा सुना जाता है। कभी बरसात के दिनों में वीर बहूटियां देखी जाती थी लेकिन अब तो जैसे ये विलुप्त हो चुके हैं। चीता जो विश्व का सबसे तेज धावक है यह भी अब भारत में बीता हुआ कल हो गया है । अब यदि एक नजर व्हेल शार्क मछ्लियों पर डाला जाय तो उनका भी अस्तित्व खतरे में ही है। अंतर्राष्ट्रीय कानून बनने के बाद भी व्हेल शार्क का बेरोक-टोक अवैध शिकर किया जा रहा है । आज इस तरह का खतरा सभी वन्य जीवों पर मडरा रहा है और इसके कारण हम स्वयं हैं। घड़ियाल , मगरमच्छ , के साथ-साथ राष्ट्रीय पक्षी मोर का भी खूब मजे से शिकार किया जा रहा है। यदि मुट्ठी भर चावल अपने छत पर छींट दीजिये और प्यारे पक्षी इनको आकर चुगते हैं तो वह द्र्श्य कितना मनोहारि प्रतीत होता है। समय बदल रहा है, दुनिया बदल रही है किन्तु धरती के मनोहारी द्रश्य को तो न बदलें। सदगुण विचार, प्रेम, प्राकृतिक लगाव और इनको प्रबल करना ही प्रकिति का एक मलहम है। ब्रेंजामिन फैक्लिन ने कहा है कि," जब आप दूसरों के लिये अच्छे बन जाते हैं तो खुद के लिये और भी अच्छे बन जाते हैं।"
यदि इन तथ्यों का अनुसरण किया जाए तो वह समय अवश्य आयेगा जब वन्य जीवों की खुशी में हमारा उनके प्रति पूरा सहयोग रहेगा।
दीपेश कुमार मौर्य (शकरमण्डी, जौनपुर)
6 टिप्पणियां:
बहुत अच्छे दीपेश जी लगातार लिखते रहने के लिये शुभकामनाये!!!!!
दी्पेश जी,
ब्लॉग जगत में स्वागत!!!
वैसे आपके लेख में एक बहुत ही अच्छी बात सामने आयी है कि आह के दौर में इंसान जहाँ अपने से ज्यादा किसी और के बारे में कुछ नही सोचता वहीं आपकी चिंता मूक पशुओं के लिये बहुत भली लगी.
लिखते रहिये....
मुकेश कुमार तिवारी
Aapki chinta waajib hai.Hum sabhi ko is sandarbh me pahal karne ki jaroorat hai.
Accha pryas, swagat.
ek baat aur hai ki- survival of the fitest.Lekin aadmi hai ki abhi tak isi yug me ji raha hai. Arun
बहुत अच्छा लिखा है . मेरा भी साईट देखे और टिप्पणी दे
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