गुरुवार, 28 मई 2009

हिन्दी साहित्य सम्राट प्रेमचन्द

मुंशी प्रेमचन्द का नाम आज भारत ही नही बल्कि सम्पूर्ण विश्व के लोगोँ के मन मस्तिष्क मेँ उनकी एक गहरी छाप लगी हुयी है जो कभी मिटने वाली नही है। प्रेमचन्द जी की हर रचनाएँ हमारा मार्गदर्शन कराती हैँ। आज व्यापार आदि दैनिक माहौल मेँ महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैँ अत: प्रेमचन्द की हर रचनाएँ हमे हमेशा यही बताती हैँ कि हमेँ परिवर्तनशील होना चाहिए। गबन एक ऐसा उपन्यास है जिसे हम सामाजिक ढांचा समझ सकते हैँ इसमेँ यह बताया गया है कि देश-प्रेम, आजादी, ग्राम्य जीवन, रहन-सहन आदि दैनिक कार्य जो समाज मेँ घट रहे हैँ उसका सारा परिद्रिश्य उन्होने पाठकोँ के सामने इस प्रकार प्रस्तुत किया है जैसे श्रंखलाबध्द कोई जंजीर। पं0 जवाहर लाल नेहरू और मुँशी प्रेमचन्द ऐसे महान योध्दा थे जिन्होँने विद्यार्थियोँ और बच्चोँ के मन मस्तिष्क और उनके ह्रदय पर विजय हासिल की। भारतवर्ष मेँ जितने भी लेखक, रचयिता, कवि आदि हुए जो वर्तमान मेँ हैँ और जो भविष्य मेँ होँगे उनके द्वारा रचित हर रचनाए समाज के लिए हितकर होगा। प्रेमचन्द ने समाज को अपनी रचनाओँ से सिख, सद्गुण विचार, अच्छा व्यवहार इत्यादि का अनुपम भेँट हमेँ दिया है और जिसे हमे अपनाना चाहिए। प्रेमचन्द जी ने बच्चोँ को विशेष ध्यान देकर ईदगाह नामक कहानी की रचना की जो ग्यान देती है कि फिजूलखर्ची और मनचलोँ के बातोँ मेँ आकर अपना भविष्य बर्बाद नही करना चाहिए। प्रेमचन्द जी ने कई कहानियोँ, उपन्यासोँ और जीवनी जैसी रचनाओँ मेँ उन्होँने अपनी रचनाएं इस प्रकार संजोए हुए है जिसे कोई ओझल नही होने दे सकता। उनकी कुछ रचनाएं अग्रलिखित हैँ-कहानियां- बूढ़ी काकी, शतरंज के खिलाड़ी, सद्गति, नमक का दारोगा आदि।उपन्यास- सेवा सदन, गोदान, गबन आदि।जीवनी- महात्मा शेख सादी, दुर्गादास और कलम तलवार और त्याग। हंस के आत्मकथांक मेँ उनकी आत्म कहानी जीवनसार नाम से 1933 मेँ प्रकाशित हुयी थी। प्रेमचन्द ने अपनी ठाकुर का कुआँ , दूध का दाम, मंदिर, मंत्र, जुर्माना जैसी कहानियोँ से समाज को यह संदेश दिया कि जातिवाद, धर्मवाद और रुढ़िवाद का हमेँ हमारे समाज से खण्डन करना चाहिए। सच मेँ यदी प्रेमचन्द के जीवन संघर्ष और उनकी रचनाओँ का ठीक ढंग से अनुसरण किया जाये तो सम्पुर्ण समाज वह दिन अवश्य देखेगा जिस दिन को साहित्य सम्राट प्रेमचन्द ने अपनी स्वर्णिम सोच मेँ देखे थे। (दीपेश कुमार मौर्य, शकरमंडी जौनपुर)