रविवार, 12 अप्रैल 2009

आपका वोट

"अपना वोट उसे दें जो देश को चलाने के साथ साथ देश को समझे भी" - दीपेश कुमार मौर्य

रविवार, 5 अप्रैल 2009

मनुष्य

मनुष्य ने दुनिया के लगभग सभी रहस्यों से पर्दा हटा लिया है। प्रक्रिति भी एक रहस्य है जिसे सुलझाने में स्वयं नये-नये रहस्य सामने आ जाते हैं जिसके पीछे हम लगे रहते हैं और हम ये नही है कि हम अपने पीछे क्या-क्या छोड़ आये हैं। हम मानव सद्भाव, प्रेम, हास्य, योग, स्वास्थ्य इत्यादि से हम अलग हो गये हैं।
कविवर 'रामधारी सिंह दिनकर' अपनी रचना "अभिनव मनुष्य" के द्वारा हमें यही उपरोक्त बातें अपनी रचना से कुछ इस प्रकार व्यक्त करते हैं-
धर्म का दीपक, दया का दीप,
कब जलेगा,कब जलेगा,विश्व में भगवान?
कब सुकोमल ज्योति से अभिषिकत-
हो, सरस होंगे जली-सूखी रसा के प्राण?
कवि कहते हैं कि हे प्रभू! जगत में दया और धर्म का प्रसार कब होगा और दया, धर्म की कोमल ज्योति से सिंचित होकर ईर्ष्या द्वेष आदि बातों से संत्रिप्त वसुधा कब सरस होगी। धरती पर अम्रित की धारा बहुत बरस चुकी किन्तु यह धरती अभी भी शीतल न हो सकी। यह अभी तक दग्ध हो रही रही है। घ्रिणा, विद्वेष, ईर्षा, पापाचार इस धरती पर अभी भी व्याप्त है और मानव के मन में धन-वैभव एवं काम सुखों की भोगलिप्सा उद्दाम भाव से लहरा रही है। पाशविक व्रित्तियों का शमन अभी तक मानव नही कर पाया है। अभी भी हमें मानव-मूल्यों की खोज है। मानवीय भावनाओं की कोई कदर नही है, सर्वत्र धन-लिप्सा का बोलबाला है।
कविवर 'दिनकर' जी अपनी क्रिति के माध्यम से कहते हैं -
भीष्म हों अथवा युधिष्ठिर, या कि हों भगवान,
बुध्द हों कि अशोक, गांधी हों कि ईसु महान;
सिर झुका सबको,सभी को श्रेष्ठ निज से मान,
मात्र वाचिक ही उन्हें देता हुआ सम्मान,
जा रहा मानव चला अब भी पुरानी राह।
कवि कहते हैं कि आज का मनुष्य भीष्म, युधिष्ठिर, क्रिष्ण, बुध्द, अशोक ईसा मसीह तथा गांधी सबको अपने से श्रेष्ठतर मानकर भी उन्हें अपने ह्रदय से इस कर्ममय संसार में समादर नही देता, बल्कि केवल वचनों से ही उसका सम्मान करता है। मात्र उनके वचनों का ही उदघोष करता है, उनके द्वारा निर्देशित मार्ग पर चलता नहीं। वह दूसरों को दु:खी करते हुए स्वयं भी दु:ख भोगता है।
संकलन कर्ता- (दीपेश कुमार मौर्य, शकरमण्डी जौनपुर )

शनिवार, 4 अप्रैल 2009

क्या अंधविश्वास लोगों को निकम्मा बना रहा है- आप भी अपनी राय दें

यदि सही मायने मे देखा जाय तो अंधविश्वास लोगों को निकम्मा बाना रहा है और इसका जीता जागता स्वरूप हम अपने समाज में देख सकते हैं। लोग जानते हैं कि अंधविश्वास पर ध्यान नही दिया जाना चाहिये लेकिन इन सब बातों को जानकर भी लोग इस पर ध्यान देते हैं। अंधविश्वास केवल गांवों में नही बल्कि शहरी भागों मे अपने पांव पसारे हुए है। अभी जल्द ही प्रियर्शन जी की फिल्म भूल-भुलैया ने अंधविश्वास पर करारा प्रहार करते हुए यह बताया कि अंधविश्वास जैसा कुछ भी नही है।
हम भारतीय भी बने भावुक विचार के होते हैं जो चीजें हमें प्रेरणा प्रदान करती है हम उन पर कम ध्यान देते हैं और जो चीजें विवाद और अन्य अपवाद प्रदान करती है उन ज्यादा ध्यान देते-देते उनमें लिप्त हो जाते हैं। अंधविश्वास एक ऐसा अपवाद है जो हमें अन्दर और बाहर दोनो ओर से खोखला बना देता है। हमें ऐसे अपवादों को जो हमारे राष्ट्र्कुल के लिये आपत्ति पैदा करती हो उन्हें एक अच्छे नागरिकता की आड़ में हमेशा-हमेशा के लिये दफन कर देना चाहिये। मेरा मानना है कि आज का छात्र भारतवर्ष की वर्तमान स्थिति को समझा और उसे गहराई से देखा तो आगे चलकर यही छात्र भारत ही नही बल्कि सम्पूर्ण विश्व के हर प्रान्त हर दिशाओं में एक नयी किरण फैलाकर अंधविश्वास जैसे अंधेरे को हमेशा के लिये खत्म कर देंगे। भारत के सभी सामाजिक लोगों और नागरिकों को एक सीमित विचारवान न होकर अपनी जागरूकताओं के दायरों को बढ़ा होगा और साथ-साथ इन बातों का ध्यान देना होगा कि हम सभी भरतीय हैं। यदि भगतसिंह, पं0 जवाहरलाल नेहरू, सुभाषचन्द्र बोस जैसे महान क्रान्तिकरी व नेता अंग्रेजों का डटकर मुकबला करने के बजाय अंधविश्वासों में विचार करते तो आज भी हम गुलामी करते रहते। आधुनिक मानव को यदि वैग्यानिकतावादी प्रवित्ती क होने को कहा जाय तो वह उसे केवल पाठ्यक्र्म के रूप में अपनाता है और सामाजिक पहलुओं से नकार देता है। जरा सोचिए! यदि एडिशन अंधविश्वास में विश्वास करते तो क्या वे दुनिया को रोशनी दे पाते, यदि न्यूटन अंधविश्वासी होते तो क्या वे गुरुत्वाकर्षण को जान पाते।
ये सभी बातें और ये महान वैग्यानिक जो विग्यान की शान हैं अंधविश्वास को नष्ट करने और समाज और देश व पूरे विश्व में एक नयी जनचेतना और एक नवीन मानव सभ्यता को बनाने की ओर इंगित करते हैं जिसमें न कोई ईष्य्रा हो , न द्वेष और न ही अंधविश्वास हो। आइए हम सभी एक मत हों और सम्पूर्ण विश्व से अंधविश्वास जैसे अंधेरे को अपने शिक्षित ग्यान रूपी प्रकाश से नष्ट कर एक नया सवेरा लाए।
दीपेश कुमार मौर्य (शकरमंडी, जौनपुर)

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2009

प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा समय की मांग

प्राचीनकाल से महात्मा, योगि इत्यादि लोग इसी धरती पर शुध्द जीवन व्यतीत कर रहे थे। वे प्राकृति से लगाव और उनमें रुचि लिया करते थे। पुराणों और महाकाव्यों में गंगा, यमुना जैसी महानदियों का वर्णन बहुत सहजता से किया गया हैं। महाकवि कालिदास ने अपने कुमारसम्भवं महाकाव्य में गंगा का वर्णन इस प्रकार किया है-
प्रभामहत्या शिखयेव दीप-
स्त्रिमार्गयेव त्रिदिवस्य मार्ग:।
संस्कारवत्येव गिरा मनीषी
तया स पूतश्च विभूषितश्च॥
अर्थात अधिक प्रभा वाली ज्वाला से दीपक समान तीनों लोको में प्रवाहित होने वाली गंगा द्वारा स्वर्ग के मार्ग के समान, व्याकरणात्मक चक्षु से शुध्द वाणी से विव्दा के समान उस पार्वती द्वारा वह हिमालय पवित्र और शुशोभित हुआ।
परन्तु आज का मानव प्राकृति के सारे अवयवों को नष्ट करके स्वयं के स्वास्थय को भी नष्ट करने पर तुला हुआ है। प्राकृति ने हमें बनाया हमें एक अच्छी जिन्दगी दी है लेकिन मानव
वैज्ञानिकता के प्रति इस कदर फँस गया है कि अगर निकलना चाहे तो भी नही निकल सकता। हम प्राकृति के बारे में बातें तो बहुत बड़ी-बड़ी करते है लेकिन उस पर अमल करने मे सदैव असफल रहते हैं। अत: इससे स्पष्ट होता है कि हमें आधुनिकता पसंद है।
वैसे तो मानव का सम्बन्ध प्राकृतिक संसाधनों से बहुत पुराना है। आदिमानव से वर्तमान मानव तक का विकास प्राकृतिक संसाधनों से रहा है। भोजन, जल, वस्त्र इत्यादि भौतिक सुख हमें इन्हीं प्राकृतिक संसाधनों से किसी न किसी रूप में हमें सुलभ हो रहे हैं। जरा सोचिए यदि हम इन संसाधनों का गलत रूप से प्रयोग करते रहे तो निश्चित ही मानव सभ्यता खतरे पड़ सकती है।
दीपेश कुमार मौर्य (शकरमंडी, जौनपुर)

बुधवार, 1 अप्रैल 2009

विलुप्त हो रहे हैं वन्य जिव

जीवन जीने और उसका उपभोग करना सभी प्राणियों का हक है और इस हक को हमसे कोई नही छीन सकता। मानव अपने स्वार्थ में जीता है और दूसरों पर ध्यान नही देता अपनी इस अछोर इच्छा के कारण प्रक्रिति सहित उसके द्वारा निर्मित जीवों को भी नष्ट करने को तुला हुआ है।
अब तो कई ऐसे जीव हैं जिनको केवल पुस्त्कों में देखा जाता है अथवा किसी द्वारा सुना जाता है। कभी बरसात के दिनों में वीर बहूटियां देखी जाती थी लेकिन अब तो जैसे ये विलुप्त हो चुके हैं। चीता जो विश्व का सबसे तेज धावक है यह भी अब भारत में बीता हुआ कल हो गया है । अब यदि एक नजर व्हेल शार्क मछ्लियों पर डाला जाय तो उनका भी अस्तित्व खतरे में ही है। अंतर्राष्ट्रीय कानून बनने के बाद भी व्हेल शार्क का बेरोक-टोक अवैध शिकर किया जा रहा है । आज इस तरह का खतरा सभी वन्य जीवों पर मडरा रहा है और इसके कारण हम स्वयं हैं। घड़ियाल , मगरमच्छ , के साथ-साथ राष्ट्रीय पक्षी मोर का भी खूब मजे से शिकार किया जा रहा है। यदि मुट्ठी भर चावल अपने छत पर छींट दीजिये और प्यारे पक्षी इनको आकर चुगते हैं तो वह द्र्श्य कितना मनोहारि प्रतीत होता है। समय बदल रहा है, दुनिया बदल रही है किन्तु धरती के मनोहारी द्रश्य को तो न बदलें। सदगुण विचार, प्रेम, प्राकृतिक लगाव और इनको प्रबल करना ही प्रकिति का एक मलहम है। ब्रेंजामिन फैक्लिन ने कहा है कि," जब आप दूसरों के लिये अच्छे बन जाते हैं तो खुद के लिये और भी अच्छे बन जाते हैं।"
यदि इन तथ्यों का अनुसरण किया जाए तो वह समय अवश्य आयेगा जब वन्य जीवों की खुशी में हमारा उनके प्रति पूरा सहयोग रहेगा।
दीपेश कुमार मौर्य (शकरमण्डी, जौनपुर)