शनिवार, 4 अप्रैल 2009

क्या अंधविश्वास लोगों को निकम्मा बना रहा है- आप भी अपनी राय दें

यदि सही मायने मे देखा जाय तो अंधविश्वास लोगों को निकम्मा बाना रहा है और इसका जीता जागता स्वरूप हम अपने समाज में देख सकते हैं। लोग जानते हैं कि अंधविश्वास पर ध्यान नही दिया जाना चाहिये लेकिन इन सब बातों को जानकर भी लोग इस पर ध्यान देते हैं। अंधविश्वास केवल गांवों में नही बल्कि शहरी भागों मे अपने पांव पसारे हुए है। अभी जल्द ही प्रियर्शन जी की फिल्म भूल-भुलैया ने अंधविश्वास पर करारा प्रहार करते हुए यह बताया कि अंधविश्वास जैसा कुछ भी नही है।
हम भारतीय भी बने भावुक विचार के होते हैं जो चीजें हमें प्रेरणा प्रदान करती है हम उन पर कम ध्यान देते हैं और जो चीजें विवाद और अन्य अपवाद प्रदान करती है उन ज्यादा ध्यान देते-देते उनमें लिप्त हो जाते हैं। अंधविश्वास एक ऐसा अपवाद है जो हमें अन्दर और बाहर दोनो ओर से खोखला बना देता है। हमें ऐसे अपवादों को जो हमारे राष्ट्र्कुल के लिये आपत्ति पैदा करती हो उन्हें एक अच्छे नागरिकता की आड़ में हमेशा-हमेशा के लिये दफन कर देना चाहिये। मेरा मानना है कि आज का छात्र भारतवर्ष की वर्तमान स्थिति को समझा और उसे गहराई से देखा तो आगे चलकर यही छात्र भारत ही नही बल्कि सम्पूर्ण विश्व के हर प्रान्त हर दिशाओं में एक नयी किरण फैलाकर अंधविश्वास जैसे अंधेरे को हमेशा के लिये खत्म कर देंगे। भारत के सभी सामाजिक लोगों और नागरिकों को एक सीमित विचारवान न होकर अपनी जागरूकताओं के दायरों को बढ़ा होगा और साथ-साथ इन बातों का ध्यान देना होगा कि हम सभी भरतीय हैं। यदि भगतसिंह, पं0 जवाहरलाल नेहरू, सुभाषचन्द्र बोस जैसे महान क्रान्तिकरी व नेता अंग्रेजों का डटकर मुकबला करने के बजाय अंधविश्वासों में विचार करते तो आज भी हम गुलामी करते रहते। आधुनिक मानव को यदि वैग्यानिकतावादी प्रवित्ती क होने को कहा जाय तो वह उसे केवल पाठ्यक्र्म के रूप में अपनाता है और सामाजिक पहलुओं से नकार देता है। जरा सोचिए! यदि एडिशन अंधविश्वास में विश्वास करते तो क्या वे दुनिया को रोशनी दे पाते, यदि न्यूटन अंधविश्वासी होते तो क्या वे गुरुत्वाकर्षण को जान पाते।
ये सभी बातें और ये महान वैग्यानिक जो विग्यान की शान हैं अंधविश्वास को नष्ट करने और समाज और देश व पूरे विश्व में एक नयी जनचेतना और एक नवीन मानव सभ्यता को बनाने की ओर इंगित करते हैं जिसमें न कोई ईष्य्रा हो , न द्वेष और न ही अंधविश्वास हो। आइए हम सभी एक मत हों और सम्पूर्ण विश्व से अंधविश्वास जैसे अंधेरे को अपने शिक्षित ग्यान रूपी प्रकाश से नष्ट कर एक नया सवेरा लाए।
दीपेश कुमार मौर्य (शकरमंडी, जौनपुर)

2 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत अच्‍छी बातें की है आपने ... बहुत पांव पसार रहा है यह ... इसे समाप्‍त करना ही होगा।

Udan Tashtari ने कहा…

निक्कमों को निक्कमा कौन बना सकता है भाई??