शनिवार, 7 सितंबर 2013

हमारा शिक्षित भारतवर्ष

        भारत विविधताओं का देश है यहाँ पर जाति धर्म और वेश-भूषा आदि विविधताओं का सामंजस्य है। लोग इस देश को चाहे जो भी कहें लेकिन यह अपनी शुद्धता और पवित्रता को बनाए रखेगा जैसा कि कालान्तर से होता आया है।
        देश के अनेक नेता, बाहुबली दल हमारी इसी विविधता का फायदा वोट कमाने के लिए वर्षों से अपनाते चले आ रहे हैं। वैसे भी हम भारतवासियों को बहुत ही भावुक कहा गया है और हम भावनाओं मे बह जाते हैं, जहां तक मेरा मानना है भावना मनुष्य होने का प्रमाण है और हमारी भावनाओ से खेलने का हक किसी को नही है। अब वह समय नही रहा जब लोग जाति और धर्म पर लड़ा करते थे। अब समय बदल गया है लोग शिक्षित हो गए हैं और सभी बातों को लोग समझ भी रहे हैं। जहां तक वोट की बात है लोगों को ऐसा नेता चुनना चाहिए जो देश को समझे, देश के नागरिकों को समझे और उनकी भावनाओं की कद्र करें। हमारे देश का प्रधानमंत्री चाहे माननीय मनमोहन सिंह हो या फिर माननीय नरेन्द्र मोदी जी इससे फर्क नही पड़ता, फर्क उनके कार्यों से पड़ता है। कमियां तो सभी में होती है यदि किसी मे कोई कमी न रहे तो वह ‘ईश्वर’ ही बन जाए। यदि आप कोई नेता चुनते है तो उसके कार्यों की गतिविधियों का निरीक्षण करें तत्पश्चात् वोट दें। जाति - धर्म के बहकावे में ना आयें और इस भारत को खण्डित होने से बचाएं।

         रविन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी MY HEAVEN नामक कविता मे कहा है-
       
           “ ( हे ईश्वर! मेरे स्वप्नों का भारत इस प्रकार का हो ) जहां लोग भय-मुक्त हों और सिर ऊंचा रहे अर्थात् लोग आत्म-सम्मान तथा निर्भयता से रहें, ज्ञान पर कोई प्रतिबन्ध न रहे, जहां संसार (मानव समाज) जाति, धर्म तथा भाषा के कारण भिन्न- भिन्न वर्गों मे न बंटा हो, जहां शब्द सत्य की गहाराई से निकलते हो, जहां पर पूर्णता की प्राप्ति हेतु लगातार प्रयास किए जाते हो, जहां तर्क की स्वच्छ धारा को छोड़कर पुरानी आदतों के नीरस मरुस्थल की बालू में न खो गए हों अर्थात् लोग पुराने रीति रिवाज के आदी न हों तथा तर्क के आधार पर नवीन विचारों को स्वीकार करने के इच्छुक हो; जहां पर मस्तिष्क ईश्वर की प्रेरणा से सदैव विकसित विचार तथा कार्य की ओर अग्रसर होता हो; हे पिता (ईश्वर) मेरे देश को इस प्रकार का स्वतन्त्रता रूपी वरदान प्राप्त हो अर्थात् मेरा देश इस प्रकार की पूर्ण प्रगति करे। “
          यदि आप उपरोक्त बातों से सहमत है तो एक टिप्पणी अवश्य करें। धन्यवाद !

बुधवार, 14 अगस्त 2013

कर्म ही सच्ची श्रद्धांजली

           कल स्वतंत्रता दिवस है वहुत ही गौरवपूर्ण पर्व जिसे हम और देश के सभी नागरिक बड़े ही उत्साह से इसके गौरवगाथा का वर्णन अपने भाषाणों, गीतों, लोकगीतों आदि मे करते हैं जो बहुत ही अच्छी बात है, लेकिन एक बात और है कि क्या हम जो बातें अपने द्वारा व्यक्त करते है क्या हम उनका सटीक अनुसरण करते हैं, इसका उत्तर आप नही बल्कि आपकी अन्तरात्मा देगी और अब तक आपको हां या नही में उत्तर मिल गया होगा।
 आशय यह है कि हम देश के बारे में बातें तो बहुत बड़ी-बड़ी करते है लेकिन उसके प्रति अपना योगदान न के बराबर करते हैं। छात्र जीवन में हममें देश-प्रेम की भावना जगाई जाती है, क्योकि छात्र ही राष्ट्र का भविष्य होता है,उनमें से कोई शिक्षक, कोई इंजीनियर, कोई डाक्टर बनता है। इन उपलब्धियों को प्राप्त कर लेने के पश्चात् उसकी राष्ट्र भावना की किरण खत्म क्यों हो जाती है? वह क्यो केवल जिविकोपार्जन करने, पैसा कमाने आदि मे लिप्त क्यो रहता है? यदि इसी मे ही उनका केवल निहित स्वार्थ ही है तो ये दिखावट की बाते ही क्यो भई, इसे भी बन्द कर दो। मै भी शिक्षक हूं लेकिन छात्रों में देश प्रेम और एकत्व की भावना का संचार करता हूं क्योकि मै यह समझता हू कि मै यदि कोई गलती करता हूं तो वे भी उसका अनुसरण करेंगे और आने वाली पीढ़ी पर ही तो राष्ट्र का भाग्य निर्भर है। मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि यदि हम केवल अपने कर्म को करें तो राष्ट्र का सर्वांगीण विकास होगा, यदि हम अपना कर्म करें तो हम अच्छे बन जाएंगे। कर्म की ही महानता को तो भगवान श्रीकृष्ण ने भी कहा है जो हर युग मे प्रासंगिक रहेगी।
         यदि हम केवल अपने कर्म करें प्रति सजग रहे और चाहे जिस पद पर रहे चाहे पुत्र के पद पर, चाहे पिता के पद पर, चाहे प्रशासनिक पद पर, चाहे गैर प्रशासनिक पद पर, शिक्षक के पद पर या छात्र के पद पर या फिर किसी भी पद पर हो केवल पूरी निष्ठा और लगन से अपना कर्म करें तो देश का सर्वांगीण विकास अवश्य होगा। केवल हमें करना सिर्फ इतना है कि भारतवर्ष में शिक्षा के प्रसार को अत्यधिक प्रेरित करना है। यदि हम केवल अपने कर्म को करें तो उन वीर सपूतों के लिए यही सच्ची श्रद्धांजली हो, जिस कर्म को निभाते हुए वे शहीद हुए।

सोमवार, 13 दिसंबर 2010

महाकवि कालिदास



संस्कृत कवि -कुल-चूड़ामणि, कवीश्वर, संस्कृत भारती के अमर कलाकार, महाकवि कालिदास का नाम संस्कृत साहित्य में मूर्धन्य हैं। जिन्होंने आज भी अपनी कृतियों के माध्यम से सम्पूर्ण मानव जगत में अपने अद्वितीय प्रतिभामयी प्रकाश को निरन्तर बिखेरे हुर है।
वे संस्कृत साहित्य के महानायक थे। अभीज्ञानशाकुन्तलम् जैसे महान नाटक के रचनाकार महाकवि कालिदास के जीवन
में कई उतार-चढाव का सामना करना पड़ा। उनके जीवन की एक प्रमुख घाटना हमें परोक्षा या अपरोक्ष रूप से ज्ञात है,
कि पण्डितों ने 'राजा शारदानन्द' की पुत्री 'विद्योतमा' से इनका विवाह करा दिया, लेकिन कुछ समय पश्चात विद्योत्मा
को पता चला कि कालिदास एक मूर्ख व्यक्ति है जिसके कारणवश उन्हे विद्योत्मा ने घर से बाहर निकाल दिया। पत्नी से अपमानित होने के बाद वे काली मन्दिर में गये जिससे काली ने प्रशन्न होकर उनको विद्या -सिध्दि का आशीर्वाद प्रदान करती हैं। विद्वान कालिदास जब अपने घर गये तो द्वार बन्द होने पर उन्होने अपनी पत्नी विद्योत्मा को संस्कृत मे आवाज लगायी- अनावृतं कपाटं द्वारं देहि (द्वार खोलो)। इसके पश्चात् विद्योत्मा ने पूछा- अस्ति कश्चित् वागविशेष:?(क्या कुछ विशिष्ट बात है?)। कालिदास ने अपनी विद्वता को प्रदर्शित करने के लिए अस्ति पद से कुमारसम्भव ग्रन्थ की रचाना की, कश्चित् पद से मेघदूत जैसे महाकाव्य की रचना की। इनके समस्त रचनाओं मे पाठकों को वो सब कुछ अवश्य प्राप्त हो जाता है जो पाठक उसमें चाहते हैं। कालिदास की रचानाएं सभी संस्कृत कवियों व साहित्यकारों की रचनाओं से भिन्न है और इनके द्वारा रचित नाटक अभीज्ञानशाकुन्तलम् के बारे में कहा भी गया है कि-
काव्येषु नाटकं रम्यं, तत्र रम्या शकुन्तला ।
तथापि चतुर्थोऽङ्क:, तत्र श्लोक चतुष्टयम्॥
महाकवि कालिदास द्वारा रचित विश्वप्रसिध्द नाटक अभीज्ञानशाकुन्तलम् के चतुर्थ अंक के चार श्लोक अत्यन्त प्रिय और मार्मिकता से पुष्ट है इनकी अधिअकांश रचनाएं जो अपना एक महत्वपूर्ण स्थान विश्व भर मे बनाये हुए है जिनमें से उनकी प्रमुख रचनाएं इस प्रकार है-
गीतिकाव्य- ॠतुसंहार, मेघदूत।
महाकाव्य- कुमारसम्भव, रघुवंश।
नाटक- मालविकाग्निमित्र, विक्रमोर्वशीय, अभिज्ञानशाकुन्तल्।
महाकवि कालिदास की रचनाएं संस्कृत साहित्य के उस अस्ताचल सूर्य की भांति है जो अस्त तो होता है लेकिन अपनी अमुख लालिमा को देकर और उदित होता है तो एक नया साहित्यिक विहान को साथ में लाकर।

दीपेश कुमार मौर्य शकरमण्डी, जौनपुर

गुरुवार, 3 जून 2010

क्या कहने हैं बिजली के

जनपद जौनपुर में जब-जब जिलाधिकारी बदले हैं तब-तब बिजली के नये शेड्यूल बने है और जब नागरिक जन अपने व्यवसाय का शेड्यूल बनाते हैं तो माननीय विद्युत अधिअकारियों का शेड्यूल पुन:परिवर्तित हो जाता है। अक्सर सुनने में आता है कि बिजली उत्पादन नही हो पा रहा है,मुम्बई और दिल्ली जैसे महानगरों में विद्युत चौबीस घन्टे लगातार रहता है फिर हमारे उत्तर प्रदेश मे ही इतनी विद्युत कटौती क्यों? एक मजे की बात यह भी है कि बदली और बरसात के दिनों मे बिजली खूब मिलती है और जब तेज धूप और गर्मी होती है तो बिजली गायब। विद्युत न मिलने से जब आक्रोशित जनता प्रदर्शन और तोड़ फोड़ करती है तो इतनी बिजली कैसे आ जाती है? ऐसा क्यो,क्या हम देश के नागरिक नही है,क्या हम बिल नही भरते,सवाल तो कई है लेकिन जवाब वही पुराने हैं

दीपेश कुमार मौर्य
शकरमण्डी, जौनपुर

रविवार, 13 दिसंबर 2009

समझो ना कुछ तो समझो ना-

जल हमारे जीवन का एक ऐसा ईंधन है जिससे हम सभी जीवित हैं। पृथ्वी सम्पूर्ण धरातलीय क्षेत्रफल `51,01,00,500' वर्ग किमी है जिसमे भूमि क्षेत्रफल 29.08% और जलीय क्षेत्रफल `सम्पूर्ण धरातल क 70.92%’ है। पृथ्वी के सम्पूर्ण जल का 97.5% समुद्री जल के रूप में है जो प्रकृति का एक मुख्य अंग है और शेष 2.5% मीठा जल बचता है इसका भी अधिकतर भाग बर्फ के रूप मे जमा हुआ रहता है इसमें 0.5% जल भूमिगत, नदियों, 0.012% मृदा में और 0.1% वायुमण्डल मे विद्यमान रहता है। शेष 0.001% जल ही हमारे लिए उपयोग में बचता है। सोचिए! सम्पूर्ण जल क मात्र 0.001% ही जल हमारे लिए शेष रहता है और इसे हम समझ नही पाते।www.blogvani.com

शुक्रवार, 18 सितंबर 2009

इतिहासद्रोही निर्देशक

भारतवर्ष के कई ऐसे अपशिष्ट नागरिक हैँ जो खुद कोई अच्छा कार्य नही करते और दूसरोँ के चरित्र पर लांछन लगाते हैँ उन्हे एक बार अवश्य सोचना चाहिए कि हम किस देश का अन्न खा रहे हैँ। अब मुख्य बात पर आत हैँ, भारतीय फिल्म निर्देशक संतोष सिवान ने तो हद ही कर दिया है उन्होने फिल्म अशोका मेँ परम वीर विजयी अशोक महान एक कन्या के पीछे लट्टू होते दिखाया है। अब आप ही सोचिए कि इतना महान योध्दा किसी कन्या के पीछे हाथ धो कर लग जाए ये बात कुछ हजम नही हुई। माना कि अशोक एक महान शासक थे और उनका भी एक जीवन था। लेकिन निर्देशक महोदय ने पूरे फिल्म मे केवल प्रेम-प्रपंच को ही मुख्य रूप दिया है जो सर्वथा गलत है उनको तो पूरे फिल्म मेँ अशोक महान के पराक्रम, विजय यात्रा, धर्म परिवर्तन आदि को मुख्य अंग बनाना चाहिए था जिससे छात्र जीवन मेँ भी सहायता मिलती। निर्देशक महोदय को तो पहले अशोक महान पर पी एच डी करनी चाहिए क्योँकि अशोक का जीवन इतना सहज नही है कि उसे तीन घंटे मेँ ही प्रदर्शित कर देँ। अशोक ही एक ऐसे महान योध्दा थे जिन्होने अपना शस्त्र त्याग दिया और धर्म परिवर्तन कर उसका देश-विदेश मेँ प्रचार-प्रसार भी किया जिसके अभिलेख, स्तम्भ आदि जीते जागते प्रमाण हैँ। भारत के हर एक नागरिक को ऐसा कार्य करना चाहिए कि दूसरोँ को अच्छी सीख, सद्गुण विचार आदि की तरफ पथप्रदर्शन करना चाहिए ना कि अश्लीलता की ओर।
मै चाहता हूं कि आप मेरे कथनो पर गौर करेँ और मेरे लेख या निर्देशक महोदय के बारे मेँ टिप्पणी (COMMENT) अवश्य करेँ। धन्यवाद

बुधवार, 16 सितंबर 2009

हमारे नायक

मेरा मानना है कि सभी मनुष्यों के अन्दर एक नायक छिपा हुआ है ये वह अहसास है जो हमे प्रेरणा प्रदान करता है।
नायक से मेरा मतलब किसी मूवी के कलाकर से नही है वे तीन या ढाई घंटे तक ही छाये रहते हैं या फिर तीन महीने
मेरा मतलब तो ये है कि भारत के वे महान नायक जो सदैव अमर हैं जिन्हे हम जैसे शब्दों के साथ नही जोड़ सकते
क्योकि वे कोई उदाहरण नही हैं वे तो इस भारतवर्ष के सच्चे नायक थे जिन्होने सारी उम्र या कहें तो अपनी सारी जिन्दगी
लगा दी भारत के भविष्य को गौरवपूर्ण बनाने के लिए। ये वही नायक हैं जिन्होने जलियांवाला बाग ह्त्याकांड में गोलियां
खायी, जिन्होने फांसी के फंदे को सहर्ष चूमा,जिन्होने अहिंसा का पाठ पढ़ाया, जिन्होने ये भी प्रचलित कर दिया कि
'खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी'। मै, आप, हम सभी जानते हैं कि इन वाक्याँशों के पीछे किन महान
नायको का नाम छिपा हूआ है लेकिन जान कर भी हम इन्हे अपनी असल जिन्दगी में नही उतारते हैं। क्योकि हम डरते है
कि इनका अनुसरण करने से कही भ्रष्टाचार, चापलूसी, घूस, धोखाधड़ी आदि कार्यों से हाथ ना धोना पड़े। आप भी अपनी
राय जरूर दें।
दीपेश कुमार मौर्य
(आर एस के डी पी जी कालेज,जौनपुर)