शुक्रवार, 18 सितंबर 2009

इतिहासद्रोही निर्देशक

भारतवर्ष के कई ऐसे अपशिष्ट नागरिक हैँ जो खुद कोई अच्छा कार्य नही करते और दूसरोँ के चरित्र पर लांछन लगाते हैँ उन्हे एक बार अवश्य सोचना चाहिए कि हम किस देश का अन्न खा रहे हैँ। अब मुख्य बात पर आत हैँ, भारतीय फिल्म निर्देशक संतोष सिवान ने तो हद ही कर दिया है उन्होने फिल्म अशोका मेँ परम वीर विजयी अशोक महान एक कन्या के पीछे लट्टू होते दिखाया है। अब आप ही सोचिए कि इतना महान योध्दा किसी कन्या के पीछे हाथ धो कर लग जाए ये बात कुछ हजम नही हुई। माना कि अशोक एक महान शासक थे और उनका भी एक जीवन था। लेकिन निर्देशक महोदय ने पूरे फिल्म मे केवल प्रेम-प्रपंच को ही मुख्य रूप दिया है जो सर्वथा गलत है उनको तो पूरे फिल्म मेँ अशोक महान के पराक्रम, विजय यात्रा, धर्म परिवर्तन आदि को मुख्य अंग बनाना चाहिए था जिससे छात्र जीवन मेँ भी सहायता मिलती। निर्देशक महोदय को तो पहले अशोक महान पर पी एच डी करनी चाहिए क्योँकि अशोक का जीवन इतना सहज नही है कि उसे तीन घंटे मेँ ही प्रदर्शित कर देँ। अशोक ही एक ऐसे महान योध्दा थे जिन्होने अपना शस्त्र त्याग दिया और धर्म परिवर्तन कर उसका देश-विदेश मेँ प्रचार-प्रसार भी किया जिसके अभिलेख, स्तम्भ आदि जीते जागते प्रमाण हैँ। भारत के हर एक नागरिक को ऐसा कार्य करना चाहिए कि दूसरोँ को अच्छी सीख, सद्गुण विचार आदि की तरफ पथप्रदर्शन करना चाहिए ना कि अश्लीलता की ओर।
मै चाहता हूं कि आप मेरे कथनो पर गौर करेँ और मेरे लेख या निर्देशक महोदय के बारे मेँ टिप्पणी (COMMENT) अवश्य करेँ। धन्यवाद

बुधवार, 16 सितंबर 2009

हमारे नायक

मेरा मानना है कि सभी मनुष्यों के अन्दर एक नायक छिपा हुआ है ये वह अहसास है जो हमे प्रेरणा प्रदान करता है।
नायक से मेरा मतलब किसी मूवी के कलाकर से नही है वे तीन या ढाई घंटे तक ही छाये रहते हैं या फिर तीन महीने
मेरा मतलब तो ये है कि भारत के वे महान नायक जो सदैव अमर हैं जिन्हे हम जैसे शब्दों के साथ नही जोड़ सकते
क्योकि वे कोई उदाहरण नही हैं वे तो इस भारतवर्ष के सच्चे नायक थे जिन्होने सारी उम्र या कहें तो अपनी सारी जिन्दगी
लगा दी भारत के भविष्य को गौरवपूर्ण बनाने के लिए। ये वही नायक हैं जिन्होने जलियांवाला बाग ह्त्याकांड में गोलियां
खायी, जिन्होने फांसी के फंदे को सहर्ष चूमा,जिन्होने अहिंसा का पाठ पढ़ाया, जिन्होने ये भी प्रचलित कर दिया कि
'खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी'। मै, आप, हम सभी जानते हैं कि इन वाक्याँशों के पीछे किन महान
नायको का नाम छिपा हूआ है लेकिन जान कर भी हम इन्हे अपनी असल जिन्दगी में नही उतारते हैं। क्योकि हम डरते है
कि इनका अनुसरण करने से कही भ्रष्टाचार, चापलूसी, घूस, धोखाधड़ी आदि कार्यों से हाथ ना धोना पड़े। आप भी अपनी
राय जरूर दें।
दीपेश कुमार मौर्य
(आर एस के डी पी जी कालेज,जौनपुर)