बुधवार, 14 अगस्त 2013

कर्म ही सच्ची श्रद्धांजली

           कल स्वतंत्रता दिवस है वहुत ही गौरवपूर्ण पर्व जिसे हम और देश के सभी नागरिक बड़े ही उत्साह से इसके गौरवगाथा का वर्णन अपने भाषाणों, गीतों, लोकगीतों आदि मे करते हैं जो बहुत ही अच्छी बात है, लेकिन एक बात और है कि क्या हम जो बातें अपने द्वारा व्यक्त करते है क्या हम उनका सटीक अनुसरण करते हैं, इसका उत्तर आप नही बल्कि आपकी अन्तरात्मा देगी और अब तक आपको हां या नही में उत्तर मिल गया होगा।
 आशय यह है कि हम देश के बारे में बातें तो बहुत बड़ी-बड़ी करते है लेकिन उसके प्रति अपना योगदान न के बराबर करते हैं। छात्र जीवन में हममें देश-प्रेम की भावना जगाई जाती है, क्योकि छात्र ही राष्ट्र का भविष्य होता है,उनमें से कोई शिक्षक, कोई इंजीनियर, कोई डाक्टर बनता है। इन उपलब्धियों को प्राप्त कर लेने के पश्चात् उसकी राष्ट्र भावना की किरण खत्म क्यों हो जाती है? वह क्यो केवल जिविकोपार्जन करने, पैसा कमाने आदि मे लिप्त क्यो रहता है? यदि इसी मे ही उनका केवल निहित स्वार्थ ही है तो ये दिखावट की बाते ही क्यो भई, इसे भी बन्द कर दो। मै भी शिक्षक हूं लेकिन छात्रों में देश प्रेम और एकत्व की भावना का संचार करता हूं क्योकि मै यह समझता हू कि मै यदि कोई गलती करता हूं तो वे भी उसका अनुसरण करेंगे और आने वाली पीढ़ी पर ही तो राष्ट्र का भाग्य निर्भर है। मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि यदि हम केवल अपने कर्म को करें तो राष्ट्र का सर्वांगीण विकास होगा, यदि हम अपना कर्म करें तो हम अच्छे बन जाएंगे। कर्म की ही महानता को तो भगवान श्रीकृष्ण ने भी कहा है जो हर युग मे प्रासंगिक रहेगी।
         यदि हम केवल अपने कर्म करें प्रति सजग रहे और चाहे जिस पद पर रहे चाहे पुत्र के पद पर, चाहे पिता के पद पर, चाहे प्रशासनिक पद पर, चाहे गैर प्रशासनिक पद पर, शिक्षक के पद पर या छात्र के पद पर या फिर किसी भी पद पर हो केवल पूरी निष्ठा और लगन से अपना कर्म करें तो देश का सर्वांगीण विकास अवश्य होगा। केवल हमें करना सिर्फ इतना है कि भारतवर्ष में शिक्षा के प्रसार को अत्यधिक प्रेरित करना है। यदि हम केवल अपने कर्म को करें तो उन वीर सपूतों के लिए यही सच्ची श्रद्धांजली हो, जिस कर्म को निभाते हुए वे शहीद हुए।